Sunday, September 6, 2009

कैसे / अमरजीत कौंके



मेरी आँखों में
लोग तुम्हारी तस्वीर
पहचान लेते हैं
मेरे चेहरे से
तुम्हारी मुस्कान
मेरे पैरों से लोग
तुम्हारे घर का
रास्ता ढूंढ़ लेते हैं.....

मेरी अंगुलिओं से लोग
तुम्हारे नक्श तराशते
मेरे कानों से
तुम्हारी आवाज़ सुनते
मेरे शब्दों से लोग
तुम्हारे नाम की
कविताएँ ढूंढ़ लेते
मेरे होंठों से
तुम्हारे जिस्म की
महक पहचान लेते हैं.....

जिस्म मेरा है
पर
मेरे जिस्म में
तुम
किस किस तरह से
रहती हो......
098142 31698

14 comments:

डिम्पल मल्होत्रा said...

raaz khol dete hai halke se ishaare aksar kitni khomsh moahabbat ki zuban hoti hai...or fir logo ki nazar bhi tez hoti hai unse kuchh nahi chhipta...

vandana gupta said...

वाह ! क्या खूब लिखा है …………इश्क़ हो तो ऐसा …………उस की महक हो तो ऐसी…………………दिल को छू गये भाव्।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

जिस्म मेरा है
पर
मेरे जिस्म में
तुम
किस किस तरह से
रहती हो......
ATISUNDAR.

rajni chhabra said...

bepanaah mohabbat ka byaan hai yeh kavita, bahut gehree

rajni chhabra said...

bepahaah mohabbat ka izhaar,nihayat khubsurtee se

rajni chhabra said...

bepanaah mohabbat ka nihayat khubsurat byaan

नमिता राकेश said...

wah,koi kisi ko kis hd tk mehsoos kar sakta hai,ye uski prakashtha h
Bdhai.
Namita rakesh

Dr. Amarjeet Kaunke said...

आप सब का बहुत आभारी हूँ...
आपने इस कविता के मर्म को पहचाना और सराहा.....अमरजीत कौंके

कडुवासच said...

... sundar abhivyakti !!!

Alpana Verma said...

प्रेम अपने चरम पर हो तो ऐसा ही महसूस होता है...उनके अक्स में अपनी छवि दिखाई देती है.
सुन्दर शब्दों में भावों को बंधा है...बहुत सुन्दर!

Urmi said...

वाह बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने ! दिल को छू गई आपकी ये शानदार रचना! बहुत ही सुंदर रूप से आपने मोहब्बत को पेश किया है!

Anonymous said...

mere hontho se tumhare jism ki mahk pahchan lete hain.......
bdi khubsurt prem kvita hai..

निर्मला कपिला said...

जिस्म मेरा है
पर
मेरे जिस्म में
तुम
किस किस तरह से
रहती हो......
प्रेम की सशक्त अभिव्यक्ति। बहुत सुनद्र शुभकामनायें। आपकी रचनायें सिर्फ बोलती ही नहीं बल्कि एक एहसास देती हैं गहरे तक दिल को छू लेती हैं बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें

M VERMA said...

मेरे जिस्म में
तुम
किस किस तरह से
रहती हो......
जिस्म से जाँ जब पैबस्त हो तो ऐसा ही होता है.
बेहतरीन अभिव्यक्ति प्रदान की है आपने