Friday, November 5, 2010

ख़ुशी / अमरजीत कौंके


ख़ुशी / अमरजीत कौंके

तुम खुश होती हो
मेरा गरूर टूटता देख कर

मुझे हारता हुआ देख
तुम्हें अत्यंत ख़ुशी होती है

मैं खुश होता हूँ
तुम्हें खुश देख कर

तुम्हें जीतता
देखने की ख़ुशी में
मैं
हर बार
हार जाता हूँ........

12 comments:

संजय भास्‍कर said...
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संजय भास्‍कर said...

बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सुन्दर कविता है.
दीपावली की असीम-अनन्त शुभकामनायें.

shelly said...

प्यार में ऐसा ही होता है....दुसरे को खुश देखने के लिए आदमी हार भी कबूल कर लेता है.......इस तरह हारने में भी एक ख़ुशी है....
कमाल की कविता है....दीपावली को इस कविता ने और संवेदनशील और सुन्दर बना दिया.......

सुशीला पुरी said...

लाजवाब !!!!!

Arpita said...

बहुत बढिया....

शरद कोकास said...

छोटी सी लेकिन गहन अर्थ लिये हुए है यह कविता

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

अमरजीत कौंके जी
क्या बात है , अच्छी कविताएं लिख कर ब्लॉग में डाली हैं आपने तो …
तुम्हें जीतता
देखने की ख़ुशी में
मैं
हर बार
हार जाता हूं … … …


सच है जी, प्यार में तो हार में ही जीत है

शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Creative Manch said...

अक्सर ऐसा होता है
जब अपने हारने में भी संतुष्टि मिलती है

सुन्दर रचना
आभार

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

प्रिय बिरादर अमरजीत कौंके जी
नमस्कार !

बहुत टाइम हो गया , कुछ नया पोस्ट करो जी ! अब तो मौसम भी मस्त हो गया है …
:)
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , आइए…

बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Anonymous said...

you became happy
on seeing my ego shattered

on seeing when i loose
you feel very happy, joyful

i became happpy
on seeing you
when you become happy

i win you
in the of seeing you
every time
i
loose you...........

Anonymous said...
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