DR. AMARJEET KAUNKE
Saturday, May 17, 2014
MY NEW POETERY BOOK....PYAAAS......
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)
प्रतिमान : जनवरी- मार्च 2020, संपादक : डा अमरजीत कौंके
मुठ्ठी भर रौशनी / अमरजीत कौंके
सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ अभी शेष है अब भी मुठ्ठी भर रौशनी इस तमाम अँधेरे के खिलाफ खेतों में अभी भी लहलहाती हैं फसलें पृथ्वी की कोख तैयार है अब ...
एक रात / अमरजीत कौंके
एक रात मैं निकला खाबों की ताबीर के लिए तो मैंने देखा कि शहर के हर मोड़ हर चौराहे पर बेठे हैं कुत्ते मोटे मोटे झबरे कुत्ते मैं बहुत डरा और बह...
अचानक/ अमरजीत कौंके
एक तितली उड़ती उड़ती आई और आ कर एक पत्थर पर बैठ गई पत्थर अचानक खिल उठा और फूल बन गया......... 098142 31698