Saturday, May 15, 2010

लड़की / अमरजीत कौंके



बचपन से यौवन का
पुल पार करती
कैसे गौरैया की तरह
चहकती है लड़की

घर में दबे पाँव चलती
भूख से बेखबर
पिता की गरीबी से अन्जान
स्कूल में बच्चों के
नए नए नाम रखती
गौरैया लगती है लड़की
अभी उड़ने के लिए पर तौलती

और दो चार वर्षों में
लाल चुनरी में लिपटी
सखिओं के झुण्ड में छिपी
ससुराल में जाएगी लड़की

क्या कायम रह पायेगी
उसकी यह तितलिओं सी शोखी
यह गुलाबी मुस्कान
गृहस्थ की तमाम कठिनाइयों के बीच
बचा के रख पायेगी क्या
वह अपनी सारी मासूमियत

कैसे बेखबर आने वाले वर्षों से
गोरैया की तरह
चहकती है लड़की.........

098142 31698

9 comments:

RAJWANT RAJ said...

kaunke ji
biswas rkhiye bhut himmti hai ye ldki
bhutguni hai ye ldki ,apni jgh tlash skti hai ye ldki,apne pnkho me ykeen rkhti hai ye ldkihmare bhrose pe khri utrti aaj ki ye pdhi likhi ldki .
sbse bdi bat aaj ke smaj ko aaena dikhane ka dm rkhti hai ye ldki .

shama said...

Dil se ik aah nikali..

kshama said...

कैसे बेखबर आने वाले वर्षों से
गोरैया की तरह
चहकती है लड़की.........
Ye din laut ke nahi aate !

ਸਫ਼ਰ ਸਾਂਝ said...

ਅਮਰਜੀਤ ਜੀ,
ਅੱਜ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਆਪ ਦਾ ਬਲਾਗ ਵੇਖਣ-ਪੜ੍ਹਨ ਦਾ ਸਬੱਬ ਬਣਿਆ। ਬਹੁਤ ਹੀ ਵਧੀਆ ਕਵਿਤਾ- ਲੜਕੀ
ਵੈਸੇ ਤਾਂ ਹਰ ਸਤਰ ਹੀ ਆਪਣੇ-ਆਪ 'ਚ ਡੂੰਘੇ ਅਰਥ ਸਮੋਈ ਬੈਠੀ ਹੈ ਪਰ ਇਹ ਸਤਰਾਂ ਤਾਂ ਬਸ ਕਮਾਲ ਨੇ....
"क्या कायम रह पायेगी
उसकी यह तितलिओं सी शोखी
यह गुलाबी मुस्कान
गृहस्थ की तमाम कठिनाइयों के बीच
बचा के रख पायेगी क्या
वह अपनी सारी मासूमियत"

ਜੀ ਹਾਂ ਜ਼ਰੂਰ ਕਾਇਮ ਰੱਖ ਸਕੇਗੀ ਆਪਣੇ-ਆਪ ਨੂੰ 'ਇਹ ਲੜਕੀ'। ਅੱਜ ਲੋੜ ਹੈ ਓਸ ਨੂੰ ਮਾਂ-ਪਿਓ ਦੀ ਸੇਧ-ਸੰਸਕਾਰਾਂ ਦੀ। ਜੇ ਅੱਜ ਮਾਂ-ਬਾਪ ਓਸ 'ਚ ਸਾਡੇ ਸੰਸਕਾਰਾਂ ਦੀ ਫੂਕ ਅੱਜ ਮਾਰ ਦੇਣ ਤਾਂ ਓਨ੍ਹਾਂ ਸਹਾਰੇ ਇਹ ਲੜਕੀ ਕਿਤੇ ਵੀ ਉੱਡ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀਆਂ ਬੁਲੰਦੀਆਂ ਛੂਹ ਸਕਦੀ ਹੈ।
ਹਰਦੀਪ

Anonymous said...

bahut khoob likh hai aap ne
sunder rachana hai

Yog Raj Chopra said...

Kaunke ji,

patal ton vee doongian ne is ladki dian jarhan ,
asman ton uchi hai is di udan,
sadian uchian udana di prerna shakti hai ihi ladki,
is nu kamjor yan lachar na samjhna mere dost,
mahabhart da karn vee nai ihi ladki

aradhana said...

सोचा हाजिरी लगा दूँ ! बहुत ही प्यारी कविता है...और सोचने को मजबूर भी करती है...

Dr. Tripat Mehta said...

wah wah behetarien...

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m sure u will like it !!!

Atul Sharma said...

अमरजीत भाई, बहुत ही सु्न्दर कविता है।
घर में दबे पाँव चलती
भूख से बेखबर
पिता की गरीबी से अन्जान
स्कूल में बच्चों के
नए नए नाम रखती

यह कविता तो गरीब-अमीर सभी पिताओं के लिए है, क्योंकि बेटियाँ तो दोनों को ही एक सी प्यारी हैं।
और ज्यादा शब्द नहीं हैं मेरे पास...