![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQNkfB1N-k9J9SNG7XNNaNxrIYaJtgKY3jJA63TcGSjbiIKbjrWjOI7xmgBKFMzKG0mu_S3fZyBjcDZRIMaXiJcPaFldkV7o_KGITBk83kIATz3n0zs1Sn5mYcDg-TIYztOMmrUXklIx4/s320/kkk.bmp)
जितनी देर दोस्त थे
कितनी सहज थी जिन्दगी
ना तुम औरत थी
ना मै मर्द
एक दुसरे का दर्द
समझने की कोशिश करते.....
अचानक
पता नहीं क्या हादिसा हुआ
जिस्म से जिस्म छुआ
हम बँट गए
औरत और मर्द में
मोहब्बत की ख़ुशी में
प्यार के दर्द में
अब मिलते हैं
तो सहज नहीं
दिलों में चोर है
मिलते तो खुश होते
विछुड़ते तो कायनात की उदासी
नयनों में भर के
सड़कों चौराहों से डर के
कितने गुनाह कर के
लेकिन
मेरी दोस्त
फिर भी यूँ नहीं लगता
कि विछुड़ने की यह
दुःख भरी संध्या
कितनी प्यारी है...
उदासी है चाहे जानलेवा
लेकिन दुनिया की
सब खुशिओं पर भारी है............