Thursday, September 3, 2009
माँ और बच्चा / अमरजीत कौंके
माँ बहुत चाव से
गमले में उगाती है
मनीप्लांट
बच्चा घिसटता जाता है
तोड़ डालता है पत्ते
उखाड़ फेंकता है
छोटा सा पौधा
माँ
फिर मिटटी में बोती है
मनीप्लांट
बच्चा
फिर निकाल फेंकता है
जड़ से
फूटने पर नए पत्ते
माँ फिर हिम्मत्त नहीं छोड़ती
लेकिन बच्चा फिर जा रहा है
पौधे की तरफ लपकता
मैं देख रहा हूँ
कितने दिनों से
माँ और बच्चे की
यह मीठी खेल
देखता हूँ
कि आखिर जीतता कौन है
माँ की हिम्मत
या बच्चे कि जिद्द........?????
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12 comments:
मानविय समबन्धो का अनोखा एहसास.....बहुत ही सुन्दर .......फिल्म की तरह आंखो से होकर गुजरी आपकी यह रचना ......लाज़वाब
बहुत ख़ूबसूरत एहसासों के साथ आपकी लिखी हुई शानदार रचना प्रशंग्सनीय है! मुझे तो moneyplant बहुत पसंद है और मेरे घर में है! आपने एक नए अंदाज़ में बड़े ही सुंदर रूप से प्रस्तुत किया है!
bhai shahab kab ki batt kar rahe ho?aaj wo maa hame to ek viradhaasharm me mili jisney itney lad pyar se pala usiko ghar se nikala phir bhi acchha likha aapne. dhanyavad ashok khatri bayana rajasthan
khoob kaha aapne ashok ji.....aap us maa par likh dijiey na to bahut punya hoga....
इसी को कहते हैं माँ की सहनशीलता ..
मगर अफ़सोस यही बच्चा अक्सर बड़ा हो कर जब माँ एक प्रश्न दोबारा पूछे तो झुंझला जाता है...
कविता में आप ने माँ और बच्चे के इस प्रेम को बड़ी सुन्दरता से समझाया है.
कविता अपना सन्देश देने में सफल है..
om ji se sahmat hun film ki tarah ankho se gujar gyee aapki post...
Poetic expression that epitomises love,care and conflict simultaneously.
माँ की सहनशीलता आपकी लेखनी में उतर आई है ,
बहुत सुंदर सी कविता है ! आपका दृष्टिकोण सराहनीय है !
bahut meethee kavita likhi hai aapne
IN RISHTON MEIN MAA JEET JAAYEGI .. KYONKI VO MAA HAI ... BAHOOT SUNDAR RACHNA .. MAN MEIN UTAR GAYEE ...
Kaunke ji , Your BLOG is the BEST..
मुझे तो लग रहा है यह बच्चे की हिम्मत और माँ की ज़िद है । अच्छी कविता
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