Friday, September 11, 2009
एक रात / अमरजीत कौंके
एक रात मैं निकला
खाबों की ताबीर के लिए
तो मैंने देखा
कि
शहर के हर मोड़
हर चौराहे पर
बेठे हैं कुत्ते
मोटे मोटे झबरे कुत्ते
मैं बहुत डरा
और बहुत घबराया
लेकिन फिर भी
बचता बचाता
शहर के दुसरे किनारे पर
निकल आया
तभी अचानक
एक कुत्ते ने
मुझे देखा
और
सही सलामत पाया
बस यही देख कर
उसने मुझे
काट खाया
कहने लगा -
तू कुत्तों की बस्ती में से
बच कर कैसे निकल आया....??????
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14 comments:
तभी अचानक
एक कुत्ते ने
मुझे देखा
और
सही सलामत पाया
बस यही देख कर
उसने मुझे
काट खाया
कहने लगा -
तू कुत्तों की बस्ती में से
बच कर कैसे निकल आया....??????
bahut hi badhiya vyang !!
kya baat hai..
बस यही देख कर
उसने मुझे
काट खाया
कहने लगा -
तू कुत्तों की बस्ती में से
बच कर कैसे निकल आया.
कौंके जी बहुत वदिया कविता ए बधाइयां जीबहुतियां बहुतियां तुसीं एसे तरां लिखदे रहो
behtreen vyangya.
Bahut hi achhi Kavita hai yaar.Its a realty. Congrats. kalsi.
कहने लगा -
तू कुत्तों की बस्ती में से
बच कर कैसे निकल आया....??????
jabardast vyang !!!!:)
bahut khoob !!
bachkar koun nikal sakta he ji...
ynha har gali har mohalla kutto se bharaa he/
aapke blog par pahli baar aayaa aour paayaa ki ye mujhase chhoot kese gayaa tha/
bahut behtreen he/
वाह आपने बड़ा अद्भूत रचना लिखा है एक नए अंदाज़ में ! बहुत बढ़िया लगा ! आपने ज़बरदस्त तरीके से व्यंग्य किया है!
bahut hi behtareen vyang.........
aapki saari kavitaayen padhin........ bahut achcha laga padh ke.......... aap likhte hain wahi hain...... jo doosre bhi sochte hain........
Regards.....
यह हालत है वर्तमान में ..हालात से एक जूझते इंसान ki.
kavita prabhaavi hai.
kutyaan da te kam hi kattan da hai|lekin V.I.P.kutte de kattan te khabar bandi hai|
अमरजीत भाई आपकी यह रचना और अन्य रचनायें पढ़ीं.. कुछ बात तो है .. बधाई । शरद कोकास
VAAH ...... BAHOOT HI GAHRI BAAT KAHI HAI ..... TOO KUTTON KI BASTI SE BACH KE KAISE NIKAL AAYA ..
शहर के हर मोड़
हर चौराहे पर
बेठे हैं कुत्ते
मोटे मोटे झबरे कुत्ते
वाह क्या आपने बात कही है .......बहुत ही ही गहराई है इन पंक्तियो जो चीज अव्यक्त है वह बहुत ही बिस्तार लिये हुये है ......और आपका जबाव नही है .....
तभी अचानक
एक कुत्ते ने
मुझे देखा
और
सही सलामत पाया
बस यही देख कर
उसने मुझे
काट खाया
वाह शब्द कम पड रहे है और क्या कहे ......बहुत ही सही .....सटीक कटाक्ष
उत्कृष्ट रचना........
बेहतरनी व्यंग्य है कौंके जी।
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