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ख़ुशी / अमरजीत कौंके तुम खुश होती हो मेरा गरूर टूटता देख कर मुझे हारता हुआ देख तुम्हें अत्यंत ख़ुशी होती है मैं खुश होता हूँ तुम्हें खुश देख...
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माँ बहुत चाव से गमले में उगाती है मनीप्लांट बच्चा घिसटता जाता है तोड़ डालता है पत्ते उखाड़ फेंकता है छोटा सा पौधा माँ फिर मिटटी में बोती है म...
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जितनी देर दोस्त थे कितनी सहज थी जिन्दगी ना तुम औरत थी ना मै मर्द एक दुसरे का दर्द समझने की कोशिश करते..... अचानक पता नहीं क्या हादिसा हुआ ज...
6 comments:
जिन्दगी से जुडी कविता ....
कई बार
दुखों के बिना भी
दुखी हो जाता है आदमी.....
हकीकत का रूप लिए
कई बार
दुखों के बिना भी
दुखी हो जाता है आदमी.....
पंक्तियो मे दम है सर जी............
aapki soch se itifaak rekhti hoon aur isi liye kahti hoon ki YA KHUDA! THODA SA ADHURAA REHNE DE,MER ZINDAGI KA PYAALA
कई बार
दुखों के बिना भी
दुखी हो जाता है आदमी.....
बहुत सुन्दर.
waah ........kya baat kahi hai.
अमरजीत जी , 'दुखों के बिना' जीवन कहाँ हो पाता है जीवन .इसलिए जब वे हम से दूर जाते हैं तो हम उन्हे पास बुलाते हैं . वो गाना याद आ रहा है -आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ .
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