Wednesday, March 10, 2010
नेम प्लेट / अमरजीत कौंके
तमन्ना थी उसकी
कि इक नेम प्लेट हो अपनी
जिस पर लिखे हों
हम दोनों के नाम
मैंने कहा-
नेम प्लेट के लिए
एक दीवार चाहिए
दीवार के लिए घर
घर के लिए
तुम और मैं
तुम और मैं और बच्चे
बच्चे....
बच्चे कह कर
उसने नज़रें चुरा लीं
और दूर आकाश में देखने लगी
जैसे तलाश रही हो...
घर
बच्चे
और
नेम प्लेट ...............
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तमन्ना थी उसकी कि इक नेम प्लेट हो अपनी जिस पर लिखे हों हम दोनों के नाम मैंने कहा- नेम प्लेट के लिए एक दीवार चाहिए दीवार के लिए घर घर के लिए ...
15 comments:
again very amazing poem....desire or reality ka zabardast antar dawand bahut hi masoom se shabdon me uker dia aap ne...ap ka jwab nahi.........
bhut accha.bhut der bad aisa padne ko mila
bhut khub.uneem
वाह!कमाल की सोच और वाकई दमदार expression!
अरे!!! कमाल है!! बहुत शानदार . इतने दिनों तक कहां थे आप?
बड़ी ही नर्म नाजुक सी कविता है !
हमेशा की तरह सुंदर ! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
बड़ी ही नर्म नाजुक सी कविता है !
हमेशा की तरह सुंदर ! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
इस नीली छतरी के तले हम ताउम्र एक नेम्प्लेट की तरह ही तो टंगे रहते हैं । अच्छी कविता ।
नव संवत्सर मंगलमय हो.
हर दिन सूरज नया उदय हो.
सदा आप पर ईश सदय हों-
जग-जीवन में 'सलिल' विजय हो..
divyanarmada.blogspot.com
gr8888
aap ke blog par aana bahut achcha laga ....bahut achcha likhte hai aap .....God bless u
Dil Ki Gehrai Se Nikli Kavita Dil Ki Gehrayion Ko Choo Gai. Shabdon Ke motiyon Ko Piro Kar Aane Jo anmol Maala Tyaar Ki Hai. Uske Liye Dil Ki Gehrayion Se Mubaaraqbaad.
Dil Ki Gehrai Se Nikli Kavita Dil Ki Gehrayion Ko Choo Gai. Shabdon Ke motiyon Ko Piro Kar Aane Jo anmol Maala Tyaar Ki Hai. Uske Liye Dil Ki Gehrayion Se Mubaaraqbaad.
Awesome poem... from your heart...
bahut hi suder abhivyakti.... sanvedansheel aur sadhi hui prastuti.....
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