उस की उम्र में
तब आया प्यार
जब उसके बच्चों की
प्यार करने की उम्र थी
तब जगे
उसके नयनों में सपने
जब परिंदों के
घर लौटने का वक्त था
उसकी उम्र में
जब आया प्यार
तो उसे
फिश एकुएरियम में
तैरती मछलियों पर बहुत
तरस आया
फैंक दिया उसने
काँच का मर्तबान
फर्श पर
मछलियों को
आज़ाद करने के लिए
लेकिन
तड़प तड़प कर
मर गईं मछलियाँ
फर्श पर
पानी के बगैर
नहीं जानती थी
वह बावरी
कि
मछलियों को
आज़ाद करने के भ्रम में
उसने मछलियों पर
कितना जुलम किया है.....
4 comments:
अमरजीत ! बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है अपने....इस कविता में अपने औरत की इच्छाओं को मछलियों के बिम्ब में बहुत ही खूबसूरती से बाँध दिया है...सच में इच्छाएँ मछलियाँ ही तो होती हैं...पानी में रहते आजादी के लिए तड़पती हैं और पानी से बहार आते पानी के बिना तड़प तड़प कर मर जाती हैं....अति सुन्दर...
शैल्ली, चंडीगढ़
मछली के बिम्ब मे यह बेहतरीन कविता है ।
Amarjit ji apki yeh kavita to kamal ki hai aur Shelly ji ne bhi bilkul sahi description dee hai...dono ko badhaee.
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