Tuesday, September 1, 2009
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सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ अभी शेष है अब भी मुठ्ठी भर रौशनी इस तमाम अँधेरे के खिलाफ खेतों में अभी भी लहलहाती हैं फसलें पृथ्वी की कोख तैयार है अब ...
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जितनी देर दोस्त थे कितनी सहज थी जिन्दगी ना तुम औरत थी ना मै मर्द एक दुसरे का दर्द समझने की कोशिश करते..... अचानक पता नहीं क्या हादिसा हुआ ज...
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तमन्ना थी उसकी कि इक नेम प्लेट हो अपनी जिस पर लिखे हों हम दोनों के नाम मैंने कहा- नेम प्लेट के लिए एक दीवार चाहिए दीवार के लिए घर घर के लिए ...
3 comments:
bahut hi khubsurti se pyar ke bhavon ko abhivyakt kia gaya hai.....shelly
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार कविता लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
KYA LAJAWAAB LIKHA HAI .... SAMUNDAR MEIN DOOB JAANE KI KHWAHISH ... KAMAAL KI RACHNA
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