Wednesday, October 14, 2009
मैं, वह और कवितायेँ / अमरजीत कौंके
प्यार करते करते
अचानक वह रूठ जाती
सीने मेरे पर
सर पटक के बोलती--
फिर आये हो वैसे के वैसे
मेरे लिए नयी कवितायेँ
क्यों नहीं लेकर आये
मैं कहता--
कहाँ से लाऊं मैं कविताएँ
कुछ लिखने के लिए तो दे
दे मेरी कविता के लिए हादसा
या प्यार दे
वह कहती--
मेरे पास क्या है
कवि हो तुम
तुम्हारे पास हैं शब्द सारे
मैं कहता--
क्या नहीं तुम्हारे पास
ब्रह्माण्ड है पूरा तुम्हारे भीतर
और वह
ब्रह्माण्ड बन जाती
मैं उसके भीतर उतरता
पर्वतों की चोटियो पर खेलता
लहरों से अठखेलिया करता
उसके सीने में उड़ते
परिंदों के साथ उड़ान भरता
उसके भीतर
कितनी ही धराएं
कितने गृह नक्षत्र
कितने सूरज
जुगनुओं ली भांति
जगमग करते
मैं सुरजों को घोड़ा बना कर
अनंत दिशाओं में उन्हें तेज़ दौड़ाता
आंधी बन कर
उसके भीतर उथल पुथल करता
तूफ़ान बन कर शोर मचाता
पुरे का पूरा ब्रह्माण्ड होती थी वो
उस पल
मैं उसके पास से लौटता
तो कितनी ही कवितायेँ
इठलाती
वल खाती
झूम झूम कर
मेरे साथ चलतीं ......
098142 31698
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13 comments:
BAHUT PYARI KAVITA HAI...AURAT KO BRAHMAAND KA DARJA KOI KAVI HI DE SAKTA HAI...SACH ME AURAT ME KITNI SHAKTI HOTI HAI K VO SADHARAN MANUSHYA KO BHI KALA SE BHARPUR KAR DETI HAI....
KAVITAON KA ITHLA ITHLA KAR CHALNA MAN KU BHITAR TAK CHOO GYA......
bahut hi gahre bhavon se bharpoor kavita.
gud very gud.apki poems padne ke baad mere pas to likhne ke liye words kam padh jate hai...........
shelly
kavita ke shikhar ka dharatal brahmand main hi to hai
बहुत बढिया!!बहुत गहरी व सुन्दर रचना है।बधाई।
मैं उसके पास से लौटता
तो कितनी ही कवितायेँ
इठलाती
वल खाती
झूम झूम कर
मेरे साथ चलतीं ....
मैं उसके पास से लौटता
तो कितनी ही कवितायेँ
इठलाती
वल खाती
झूम झूम कर
मेरे साथ चलतीं ......
मन के सभी कोनो को वीणा की तार की भांति झनकृत कर गई आपकी ये पंक्तियाँ..........
अनुपम सौन्दर्य लिये हुये कविता......जिसको बयाँ शब्दो मे करना मुश्किल है ........नतमस्तक!दीपावली की शुभकामनाये!
भाई ऐसी प्रेयसी हम सब को मिले जो कवितायें मांगती हो । बहुत सुन्दर प्रेम कविता के लिये बधाई ।
बहुत ही सुंदर रचना लिखा है ! आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
bahut achhi kavita hai, stree ke man kee vishalta ko mahsus kar aapne likha hai, behad sundar, badhai sweekaren.
AAP SABHI KA BEHADD SHUKARGUZAR HUN....SO THANKS
कल्पना की पराकाष्ठा छु लेते हो मित्र
इत्र उडेल देते हो सूखे बंजर दिलों में LEKIN THODI MEHNAT KASNE PAR BHI LGAYA KRO
सीने मेरे पर
सर पटक के बोलती--
PYAR MEIN ..SEENE PAR SAR PATKA NAHIN JATA RKHA JATA HAI
thik kaha apne shyam bhai....pyar me sine par sar rakha jata hai par jb gussa jataana ho to patka jata hai dost..... thanks for ur precious comments....
kbhi aao yar hamare gareebkhane mein bhi ujala kar do
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