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सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ अभी शेष है अब भी मुठ्ठी भर रौशनी इस तमाम अँधेरे के खिलाफ खेतों में अभी भी लहलहाती हैं फसलें पृथ्वी की कोख तैयार है अब ...
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जितनी देर दोस्त थे कितनी सहज थी जिन्दगी ना तुम औरत थी ना मै मर्द एक दुसरे का दर्द समझने की कोशिश करते..... अचानक पता नहीं क्या हादिसा हुआ ज...
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तमन्ना थी उसकी कि इक नेम प्लेट हो अपनी जिस पर लिखे हों हम दोनों के नाम मैंने कहा- नेम प्लेट के लिए एक दीवार चाहिए दीवार के लिए घर घर के लिए ...
17 comments:
amarjeet...once again u v written fantastic....many many congratulation...pathar pe tittli ko betha kar koi ap jaisa kavi hi pathar ko phool me tabdeel hote mahsus sakta hai....hardik vadhaai.....
ਬਾਬਾ ਜੀ ਖੂਬਸੂਰਤ ਕਵਿਤਾ ਹੈ... ਵਾਰ ਵਾਰ ਪੜ੍ਹਨ ਵਾਲੀ..
Waah ! Kya kalpna hai!
khoobsurat masoom ehsaas.
मुझे अज्ञेय का एक हाइकू याद आया ..डाली से उड़ा फूल/ अरे तितली " क्या बत है ।
A wonderful composition. Your writing inspired me to write these lines:
in pathron ke shehr mein
kaun hai jo phool khilata hai,
kuchh titli jaison ke liye hi to
baharon ka mausam laut kar aata hai...
kin shabdon mein is ahsaas ki tarif karun? bahut hi gahre ahsaas......har koi wahan tak nhi pahuch pata jiske paar aap dekh lete hain.
pls visit at -http://vandana-zindagi.blogspot.com
shelly, gurpreet, shama ji,anamika ji, sharad kokas ji, vandana ji aur amritbeer....many many thanks for ur beautiful comments.....
बहुत सुन्दर रचना!! एक सुन्दर एहसास।
pyaar patthar main bhi jaan daal deta hai...
अमरजीत जी ! बहुत सुंदर बात कही आपने ! नफरत कुछ नहीं
केवल प्रेम की कमी मात्र है ! इतनी सार्थक रचना के लिए बधाई !
titli ki takat bemisaal hai.
kya baat hai..
amazing, bahut khoob..
आपको नये साल २०१० की असंख्य शुभ कामनाये !
वाह बहुत सुन्दर कविता है बधाई नये साल की भी बहुत बहुत शुभकामनायें कई दिन नेट से दूर रही इस लिये देर से नये साल की बधाई के लिये क्षमा चाहती हूँ । धन्यवाद्
waah! patthar ko... phool prem hi banata hai!
pathar mein phool jesi masumiat daalna to koi aap se seekhe
from Hoor
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