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सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ अभी शेष है अब भी मुठ्ठी भर रौशनी इस तमाम अँधेरे के खिलाफ खेतों में अभी भी लहलहाती हैं फसलें पृथ्वी की कोख तैयार है अब ...
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जितनी देर दोस्त थे कितनी सहज थी जिन्दगी ना तुम औरत थी ना मै मर्द एक दुसरे का दर्द समझने की कोशिश करते..... अचानक पता नहीं क्या हादिसा हुआ ज...
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तमन्ना थी उसकी कि इक नेम प्लेट हो अपनी जिस पर लिखे हों हम दोनों के नाम मैंने कहा- नेम प्लेट के लिए एक दीवार चाहिए दीवार के लिए घर घर के लिए ...
12 comments:
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
सुन्दर कविता है.
दीपावली की असीम-अनन्त शुभकामनायें.
प्यार में ऐसा ही होता है....दुसरे को खुश देखने के लिए आदमी हार भी कबूल कर लेता है.......इस तरह हारने में भी एक ख़ुशी है....
कमाल की कविता है....दीपावली को इस कविता ने और संवेदनशील और सुन्दर बना दिया.......
लाजवाब !!!!!
बहुत बढिया....
छोटी सी लेकिन गहन अर्थ लिये हुए है यह कविता
अमरजीत कौंके जी
क्या बात है , अच्छी कविताएं लिख कर ब्लॉग में डाली हैं आपने तो …
तुम्हें जीतता
देखने की ख़ुशी में
मैं
हर बार
हार जाता हूं … … …
सच है जी, प्यार में तो हार में ही जीत है
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अक्सर ऐसा होता है
जब अपने हारने में भी संतुष्टि मिलती है
सुन्दर रचना
आभार
प्रिय बिरादर अमरजीत कौंके जी
नमस्कार !
बहुत टाइम हो गया , कुछ नया पोस्ट करो जी ! अब तो मौसम भी मस्त हो गया है …
:)
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , आइए…
बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
you became happy
on seeing my ego shattered
on seeing when i loose
you feel very happy, joyful
i became happpy
on seeing you
when you become happy
i win you
in the of seeing you
every time
i
loose you...........
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