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ख़ुशी / अमरजीत कौंके तुम खुश होती हो मेरा गरूर टूटता देख कर मुझे हारता हुआ देख तुम्हें अत्यंत ख़ुशी होती है मैं खुश होता हूँ तुम्हें खुश देख...
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माँ बहुत चाव से गमले में उगाती है मनीप्लांट बच्चा घिसटता जाता है तोड़ डालता है पत्ते उखाड़ फेंकता है छोटा सा पौधा माँ फिर मिटटी में बोती है म...
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प्यार करते करते अचानक वह रूठ जाती सीने मेरे पर सर पटक के बोलती-- फिर आये हो वैसे के वैसे मेरे लिए नयी कवितायेँ क्यों नहीं लेकर आये मैं कहता-...
3 comments:
अमरजीत साहब,
ऐसा ही होता है जी, जिसके लिए लिखा हैं आपने न वो भी पढेगा,,,
आखिर कब तक बचेंगे उनकी नज़रों आपके ये जज़बात...
खूबसूरत अंदाज़-ऐ-बयान है आपका..
बेहतरीन..
lajawaab........amazing
kal website pae jaa kar aapka blog pada...kush prints bhi nikale...apki kavita KUCHH SHABAD kamaal ki hai.....
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