Sunday, July 19, 2009
फिश एकुएरियम / अमरजीत कौंके
उस की उम्र में
तब आया प्यार
जब उसके बच्चों के
प्यार करने की उम्र थी
तब जगे उस के नयनों में सपने
जब परिंदों के घर लौटने का
वक्त था
उसकी उम्र में जब आया प्यार
तो उसे
फिश एकुएरियम में
तैरती मछलिओं पर
बहुत तरस आया
फैंक दिया उसने फर्श पर
कांच का मर्तवान
मछ्लिओं को आजाद करने के लिए
तड़प तड़प कर मरी मछलिआं
फर्श पर
पानी के बगैर
वो बावरी नहीं थी जानती
कि मछलिओं को
आजाद करने के भ्रम में
उसने मछलिओं पर कितना
जुलम किया है......
०९८१४२-३१६९८
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12 comments:
waah waah...
आपको ठीक से मालूम है न की उनके दीमाग में कोई...
बहुत ही सुन्दर रचना.बधाई.अभी मैने आपकी टिप्पणियो का follow up मेल में मंगाया तब जा के टिप्पणी पोस्ट हुई.
बहुत खूब .....!!
ऐसा लगा कहीं आस पास की घटना को इंगित कर लिखी है आपने .....!
बधाई ब्लॉग जगत में पदार्पण के लिए .....!!
Congratulations on your new blog. The poem is very beautiful. Surjit
Sundar...aisa kisee ke bhee saath ho sakta hai..pyar ka jzba kab, ujagar ho kaun jaan paya hai?
Anek shubhkamnayen!
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Dear Amarjitji
Namaskar.Aap ki dard se bhri kavitayen bahut achchi lagi.Sadgi se bhri ,dil ko chu leynevali. Sab main thoda sa nayapan hai.Bahut bahut badhi.
Shubhkamnayon ke saath,
Dr.Anjana Sandhir
कौंके जी, बहुत बहुत बधाई हिन्दी में अपना ब्लॉग शुरू करने की। चलिए अब आपके ब्लॉग पर आपकी रचनाएं हिंदी में पाठकों को सहज सुलभ हो जाएंगी। नए ज़माने की इस नई तकनीक से हम लेखक कवियों को अवश्य जुड़ना चाहिए। मेरी शुभकामनाएं!
achcha likhte hain amarjeet ji,aise hi likhte raheeye.
bahut hi gahre bhavon se sarabor hai kavita.
weldone young man
tejinder singh jashan
hmmm...gehri baatein...
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