Tuesday, August 11, 2009
क्यों
क्यों आती हो
तुम पास मेरे
तोड़ कर सारी दीवारें
उलांघ कर
रास्तों की वर्जित रेखाएं
मन पर
गुनाह और प्यार की
कशमकश का बोझ लिए
क्यों आती हो तुम
पास मेरे
तुम्हारे उस से क्या
अलग है मुझ में ?
मैं आती हूँ तुम्हारे पास
कि तुम्हारे छूने से
मेरी देह में सोया हुआ
संगीत जागता है
और मेरे मुर्दा अंग
अंगडाई लेते हैं
मैं
इस लिए आती हूँ
तुम्हारे पास
कि तुम्हारे पास
मैं
एक जीती जागती
सांस लेती
धड़कती
महसूस करती
जीवंत औरत होती हूँ
और अपने उस के पास
सिर्फ एक मुर्दा लाश.....
इस लिए
आती हूँ मैं
पास तुम्हारे............
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10 comments:
bahut hi khoobsoorat bhav.........bahut gahrayi hai bhavnaon mein.
आप की कवितायेँ बहुत उम्दा हैं, मन को छू गयी.
रीतू कलसी
Amarjeet Ji
Namaste
Mujhe aapki rachna bahut achhi lagi. Bahut khubsoorat aur lajawab aur sundar abhivyakti ke saath likhi hui aapki ye rachna behad pasand aaya. Main aapko comment nahin de pa rahi hoon. Rachna ke niche comment dene ka option nahin dekh payi isliye mail par likh diya.
Urmi
Amarjit Ji
Great
Randhir Singh
सीधे सादे शब्दों में कही गयी कविता सुन्दर बन पड़ी है ...
भावनात्मक , प्यार से परिपूर्ण कविता
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’
बहुत ही सुन्दर रचना. बधाई.
this peom so very nice
i like this
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