Tuesday, June 22, 2010
दुखों भरी संध्या / अमरजीत कौंके
जितनी देर दोस्त थे
कितनी सहज थी जिन्दगी
ना तुम औरत थी
ना मै मर्द
एक दुसरे का दर्द
समझने की कोशिश करते.....
अचानक
पता नहीं क्या हादिसा हुआ
जिस्म से जिस्म छुआ
हम बँट गए
औरत और मर्द में
मोहब्बत की ख़ुशी में
प्यार के दर्द में
अब मिलते हैं
तो सहज नहीं
दिलों में चोर है
मिलते तो खुश होते
विछुड़ते तो कायनात की उदासी
नयनों में भर के
सड़कों चौराहों से डर के
कितने गुनाह कर के
लेकिन
मेरी दोस्त
फिर भी यूँ नहीं लगता
कि विछुड़ने की यह
दुःख भरी संध्या
कितनी प्यारी है...
उदासी है चाहे जानलेवा
लेकिन दुनिया की
सब खुशिओं पर भारी है............
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14 comments:
bahut sundar ...bhav bhari kavita
हम बँट गए
औरत और मर्द में
मोहब्बत की ख़ुशी में
प्यार के दर्द में
कौंके जी आपकी कविता दिल को छू गयी। बहुत बहुत बधाई
लेकिन
मेरी दोस्त
फिर भी यूँ नहीं लगता
कि विछुड़ने की यह
दुःख भरी संध्या
कितनी प्यारी है...
उदासी है चाहे जानलेवा
लेकिन दुनिया की
सब खुशिओं पर भारी है.
बहुत सुन्दर कविता है अमरजीत जी. बहुत दिनों बाद दिखाई दिये हैं, कोई खास वजह?
लेकिन
मेरी दोस्त
फिर भी यूँ नहीं लगता
कि विछुड़ने की यह
दुःख भरी संध्या
कितनी प्यारी है...
Bahut khoob!
sanu ji, vandna ji, kapila ji n shama ji kavita padne aur comment dene k liye bahut shukrya....
कविता दिल को छू गयी। बहुत बहुत बधाई
जितनी देर दोस्त थे
कितनी सहज थी जिन्दगी
ना तुम औरत थी
ना मै मर्द
एक दुसरे का दर्द
समझने की कोशिश करते....
ਆਪ ਦੀਆਂ ਹੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਤਰਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬੀ 'ਚ ਕਹਿਣ ਦੀ ਇੱਕ ਕੋਸ਼ਿਸ਼...
ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਅਮਰਜੀਤ ਜੀ
ਦੋਸਤਾਂ ਦੀ ਇਹ ਜ਼ਿੰਦਗੀ
ਕਿੰਨੀ ਸਹਿਜ-ਸਹਿਜ ਸੀ
ਨਾ ਔਰਤ-ਮਰਦ ਦਾ ਰੌਲ਼ਾ ਸੀ
ਕਿੰਨਾ ਸਭ ਕੁਝ ਮਨ ਭਾਉਂਦਾ ਸੀ...
Amarjeet ji bahut khoob....bahut sunder nazam hai aapki.....
Amarjeet ji bahut khoob....bahut sunder nazam hai aapki.....
उम्दा प्रस्तुती!
उदासी है चाहे जानलेवा
लेकिन दुनिया की
सब खुशिओं पर भारी है..........
अमरजीत जी .. ये उदासियाँ ही तो जीने का सबब होती हैं ... बहुत लाजवाब लिखा है आपने ...
खूबसूरत
Bahut piara aur sanvedansheel ehsas hai
Bat dil ko chhoo gayee
really commendable
kavtaavan bahut pasand aaiyan.aaj nawan zmana de aitwarta vich v aap di kavta pari ,oh v changi lagi.eh silsila jari rakhna.
gurnam singh karnal
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