Tuesday, July 21, 2009
नदी एक साँवली सी / अमरजीत कौंके
अक्सर आती मेरे पास
नदी एक साँवली सी
हम खामोश एक दुसरे की आँखों में देखते
अनगिनत बातें करते
अनगिनत अहद
हम हँसते तो
हवाओं में किसी के चिंघाड़ने की
आवाजें सुनती
दीवारों में आँखें जाग उठती
सूरज आग उगलने लगता
वह कहती
मुझे धुप से डर लगता है
मुझे हवा से खौफ आता है
दूर ले चलो मुझे
सपनो के जामुनी देस
जहाँ ना धुप हो ना हवा
कैसे समझाता
उस सांवली नदी को मै
कि
धुप और हवा के बिना
जीना कितना कठिन होता है
कितना कठिन होता है.........
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15 comments:
कैसे समझाता
उस सांवली नदी को मै
कि
धुप और हवा के बिना
जीना कितना कठिन होता है
कितना कठिन होता है.........
sahi to hai, dhoop hawa ke bina sab kathin hai...
भावाभिव्यक्ति अच्छी है अमरजीत जी.
प्रकृति के बिम्बों को अच्छा प्रयोग किया है.
लफ्ज़ कम पड़ते हैं आपकी कविता के बावत कुछ कहने के लिए ! लगता है कि तस्वीरों में सोचते हैं ! एक चित्र उभरने लगता है साँवरी नदी का हो या एक्वेरियम का ! तकरीबन आपकी सभी कविताओं के बिम्ब पाठक से सामने सजीव हो उठते हैं !बधाई!
रेखा
i really appriciate ur poems...ur words are bigger than my thinking.....gurpreet
... sundar rachanaa !!!
नदी एक साँवली सी ....कविता का शीर्षक ही अतय्धिक भाया ...कविता के बहाव भी अच्छे लगे ...और सबसे ज़्यादा पसंद आई उस नदी की तस्वीर.....
dear amarjeet ! It is a wonderful blog.
I like the poem/picture/painting combination display.
You are showing your artistic fibre.
Congratulations.
Ravi.
mere blog per aane ke liye shukriya kyonki isi ki wajah se maine apka blog padha
bahut khoobsurt hai apki rachanayen
shukriya
wow............lajawaan........kitne gahre bhav hain aur utna hi khoobsoorat shabd sanyojan.
pic jo lagayi hai kavita ke sath behtreen hai usse bhi kavita ka roop aur nikhar aaya hai.
Ek din apne saamne
saaf–sa ek aaina rakhna
phir uske aks par kuch likhana
koi aisi baat
tum usmein kahna
jismein sirf tum rahna
apne har jazbaat ke saath…
sab ujle-maile khwaab ke saath
choo lene waaley ehsaas ke saath
par jab bhi dhoomil ho jaaye…
likhane mein khud ka dikhna
tab kabhi nahin; tum kuch bhi likhna
kyuonki zaroori hai
apne likhe mein dikhate rahna
aur khud ko dekhate huye likhate rahna
tab hi
khud ko achcha lagega
aur duniya ko sachcha lagega.
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~
…! … Subh Srijan! ... Rahe Anant!!…
Neelesh Jain, Mumbai
http://www.yoursaarathi.blogspot.com/
Bhaut hi umda Amar paji
bhaut aachha hai Amar paji
umda
speechless........
Personification......nadee se baatein kerna aur nadee ka aapse baat kerna behad umda bhav hai....iske liye aap beshak badhai ke patr hai....aur aapka vo nadee ka picture to bahut hi khoobsoorat laga...
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